ठाणे। दिवाली रोशनी, आनंद और आशा का पर्व है — लेकिन इस बार यह चमक एक अनोखे ठिकाने से आई है। ठाणे के क्षेत्रीय मनोरोग अस्पताल में हर साल की तरह इस वर्ष भी मरीजों ने अपने हाथों से बनाए लालटेन, तोरण, सुगंधित मोमबत्तियाँ और रंगोली से न सिर्फ़ अस्पताल को सजाया, बल्कि अपने जीवन में भी नई रोशनी भरी है।
यहाँ जलने वाले दीये केवल मिट्टी के नहीं, बल्कि पुनर्वास, आत्मनिर्भरता और आत्मविश्वास के प्रतीक हैं। मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्तियों के जीवन में जो अंधकार होता है, उसे रोशनी में बदलने का काम यह पहल करती है।
अक्टूबर माह को ‘विश्व मानसिक स्वास्थ्य माह’ के रूप में मनाते हुए, अस्पताल के व्यावसायिक चिकित्सा विभाग ने मरीजों को रचनात्मक कार्यों से जोड़ा। चिकित्सा अधीक्षक डॉ. नेताजी मुलिक के मार्गदर्शन में महिला और पुरुष विभागों के मरीजों ने मिलकर लगभग एक हज़ार लालटेन, पाँच सौ यूटेन पैकेट, सुगंधित मोमबत्तियाँ, तोरण, सुंदर रंगोलियाँ, डेढ़ सौ आकाश लालटेन, और एक हज़ार मोम के दीपक तैयार किए।
इन हस्तनिर्मित वस्तुओं को दिवाली के दौरान प्रदर्शन के लिए रखा जाता है। नागरिक इन्हें ख़रीदते हैं — जिससे मरीजों को आर्थिक सहयोग तो मिलता ही है, साथ ही “मैं भी कुछ कर सकता हूँ” जैसी आत्मविश्वास की भावना भी विकसित होती है।
अस्पताल परिसर को इस वर्ष भी मरीजों द्वारा बनाए गए आकाश लालटेन, झंडों और तोरणों से सजाया जाएगा। इस कार्यक्रम की सफलता में व्यावसायिक चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. हेमांगिनी देशपांडे, डॉ. सुधीर पुरी, डॉ. जानवी केरजरकर, और डॉ. अश्लेषा कोली सहित समर्पित स्टाफ ने विशेष योगदान दिया है।
“हम केवल दवाइयाँ नहीं देते, हम मन का पुनर्वास करते हैं। व्यावसायिक चिकित्सा विभाग में दी जाने वाली गतिविधियाँ रोगियों की एकाग्रता, समन्वय और समझ कौशल को विकसित करती हैं — ताकि वे समाज की मुख्यधारा में फिर से आत्मविश्वास के साथ लौट सकें।”
— डॉ. नेताजी मुलिक, चिकित्सा अधीक्षक, क्षेत्रीय मनोरोग अस्पताल, ठाणे
यह पहल याद दिलाती है कि दिवाली की सच्ची रोशनी बाहर नहीं, मन के भीतर जगती है — जहाँ उम्मीद का एक दीपक जलता है, वहीं से नया सवेरा शुरू होता है।