
मुंबई:
देश की आर्थिक राजधानी मुंबई की पहचान जहां एक ओर ऊंची इमारतें और तेज़ रफ्तार ज़िंदगी है, वहीं दूसरी ओर फुटपाथों पर बैठकर जिंदगी की जंग लड़ते फेरीवाले भी इसका अभिन्न हिस्सा हैं। महज़ 5 रुपये में धनिया, मिर्ची और कड़ी पत्ता देने वाले ये फेरीवाले शहर के आमजन के जीवन का अहम हिस्सा हैं, लेकिन आज ये अपने अस्तित्व और आजीविका की लड़ाई लड़ रहे हैं।
भाजपा नेता व पूर्व उपमहापौर बाबुभाई भवानजी ने कहा कि मुंबई के फेरीवाले “क्रूरता नहीं, सहानुभूति के पात्र” हैं। उन्होंने कहा कि मुंबई में लगभग 3 लाख फेरीवाले हैं, जिनके परिवार सहित यह आंकड़ा 10 लाख से ऊपर जाता है। ये लाखों किसानों, फैक्ट्रियों और कामगारों के उत्पाद आम जनता तक पहुंचाते हैं, जिससे यह आंकड़ा 20–25 लाख लोगों की रोज़ी-रोटी से जुड़ जाता है।
फेरीवालों की कमाई का बड़ा हिस्सा मनपा और पुलिस की भ्रष्ट वसूली में चला जाता है। अगर यह बंद हो जाए तो फेरीवाले और सस्ते दामों में सामान बेच सकते हैं। मनपा द्वारा दस्तावेज़ों के अभाव में लाइसेंस न देना, फुटपाथों से हटाने की कार्रवाई और पुलिस की मनमानी फेरीवालों की रोज़ी-रोटी पर संकट ला रही है।
पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मनोहर जोशी के खिलाफ फेरीवालों की एकजुटता ने इतिहास रचा था जब उनके बयान से नाराज होकर फेरीवालों ने उन्हें हरवाया था। बाबुभाई ने कहा कि आज भी अगर फेरीवाले एकजुट हो जाएं, तो वे एक बड़ा वोट बैंक बन सकते हैं और राजनीतिक संतुलन को बदल सकते हैं।
भवानजी ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने फेरीवाला कानून बनाया और नरेंद्र मोदी सरकार ने मुद्रा लोन योजना के तहत फेरीवालों की मदद की, लेकिन मुंबई मनपा इस पर अमल नहीं कर रही। उन्होंने कहा कि मनपा के कुछ लोग खुद दुकान लगवाते हैं और बाद में सामान जब्त कर लेते हैं, जिससे करोड़ों का भ्रष्टाचार होता है।
आज जरूरत है कि फेरीवालों को डोमिसाइल जैसे ज़रूरी दस्तावेज़ दिलाए जाएं, उनके लिए पुनर्वास की व्यवस्था हो और कानूनी सुरक्षा मिले, ताकि वे डर और अपमान से मुक्त होकर व्यापार कर सकें। वरना यह संकट लाखों गरीबों और आमजन के लिए भी बड़ी मुश्किलें खड़ी कर देगा।