Raj Thackeray extended the hand of friendship

अश्विनी कुमार दुबे। राष्ट्रीय स्वाभिमान
मुंबई | महाराष्ट्र की राजनीति एक बार फिर करवट लेने को तैयार दिख रही है। शिवसेना से अलग होकर अपनी राह चुनने वाले राज ठाकरे ने अब उद्धव ठाकरे के साथ संभावित एकता की बड़ी झलक दे दी है। राज ठाकरे ने कहा है कि “हमारे मतभेद, झगड़े और वैचारिक टकराव अपनी जगह हैं, लेकिन महाराष्ट्र के हित के सामने यह सब बौना है।”
यह बयान उन्होंने फिल्म निर्माता महेश मांजरेकर के यूट्यूब चैनल पर दिए इंटरव्यू के दौरान दिया, जिसमें महाराष्ट्र की वर्तमान राजनीति, शिवसेना से रिश्ता और भाजपा के साथ संभावित समीकरणों पर खुलकर चर्चा हुई।
“साथ आना मुश्किल नहीं, बस इच्छाशक्ति होनी चाहिए”: राज ठाकरे
राज ठाकरे ने संकेत दिया कि अगर राज्य का हित सर्वोपरि हो, तो पुराने विवादों को भुलाकर आगे बढ़ा जा सकता है। उन्होंने कहा, “मुझे नहीं लगता कि एक साथ आना और एक साथ रहना कोई कठिन बात है। ये निजी इच्छा या राजनीतिक स्वार्थ का मामला नहीं है — सवाल सिर्फ इच्छाशक्ति का है।” उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि सभी मराठी समर्थक ताकतें एकजुट होकर एक मंच पर आएं। उनका इशारा साफ था — क्षेत्रीय अस्मिता को बचाने के लिए राजनीतिक पार्टियों को अपने मतभेद भुलाकर साथ आना चाहिए।
उधर, उद्धव ठाकरे ने भी नरम रुख दिखाते हुए कहा कि “मेरी तरफ से कभी कोई झगड़ा नहीं था”, जिससे इस संभावित मेल की अटकलों को और बल मिला है। राज ठाकरे ने एकनाथ शिंदे और भाजपा से जुड़े सवालों पर भी खुलकर राय रखी। उन्होंने आगे कहा कि जब उन्होंने शिवसेना छोड़ी थी, तो कई विधायक और सांसद उनके संपर्क में आए थे, लेकिन उन्होंने कभी किसी के अधीन काम करने का विचार नहीं किया। बालासाहेब को छोड़ने का मतलब था स्वतंत्र राह अपनाना। इसलिए मैंने किसी दूसरी पार्टी में विलय नहीं किया।
भाजपा के साथ संभावित गठबंधन पर उन्होंने कहा कि, “मेरी विचारधारा भाजपा से मेल नहीं खाती। लेकिन राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता। मैं जो भी करूंगा, महाराष्ट्र और मराठी मानुस के हित में करूंगा।”
क्या ठाकरे बंधुओं की एकता से बदलेगा महाराष्ट्र का राजनीतिक संतुलन?
विश्लेषकों का मानना है कि अगर उद्धव और राज ठाकरे एक साथ आते हैं, तो यह महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़ा गेम-चेंजर साबित हो सकता है। एक ओर जहां शिवसेना (उद्धव गुट) को अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी पड़ रही है, वहीं मनसे को भी राजनीतिक मुख्यधारा में वापसी की तलाश है। ऐसे में अगर दोनों ‘ठाकरे’ एकजुट होते हैं, तो यह न सिर्फ मराठी अस्मिता की राजनीति को मजबूती देगा, बल्कि महा विकास आघाड़ी (MVA) के समीकरणों को भी नया जीवन दे सकता है।