पुणे: मनसे अध्यक्ष द्वारा आज मनसे की 19वीं वर्षगांठ के अवसर पर पुणे में आयोजित वार्षिकोत्सव में पवित्र स्नान का मजाक उड़ाने से कई लोगों की भावनाएं आहत हुई हैं। प्रयागराज में कुंभ मेले को राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन और आगामी उत्तर प्रदेश चुनावों के लिए एक प्रयोग के रूप में देखना विपक्षी दलों के मुद्दे को खुद राज ठाकरे ने बढ़ावा दे दिया है तो सवाल उठने लगा है कि क्या राज ठाकरे फिर से हिंदुत्व से यू-टर्न लेंगे।
राज ठाकरे ने कुंभ मेले के पवित्र स्नान की तुलना अंधविश्वास से की।
इस वर्ष राज ठाकरे ने भी 31 जनवरी 2025 को एक पार्टी कार्यक्रम में भाजपा और ईवीएम के बीच मिलीभगत पर टिप्पणी की थी और महाराष्ट्र तथा देश में ईवीएम प्रणाली के परिणामों पर सार्वजनिक रूप से संदेह व्यक्त किया था। उन्होंने उपमुख्यमंत्री अजीत पवार की राष्ट्रवादी पार्टी के निर्वाचित विधायकों पर भी सवाल उठाए और अपनी पार्टी और कांग्रेस के कुछ नेताओं के हार का उदाहरण भी दिया था। पिछले साल महाराष्ट्र में ईवीएम विरोधी राजनीति ने काफी जोर पकड़ लिया था और जहां कांग्रेस और महाविकास आघाड़ी के नेताओं ने राज ठाकरे के रुख का स्वागत किया था, वहीं भाजपा ने राज ठाकरे की आलोचना शुरू कर दी, जिससे भाजपा और राज ठाकरे के बीच दरार के संकेत मिलने लगे थे।
राज ठाकरे ने अपनाया था कट्टर हिंदुत्ववाद
राज ठाकरे (Raj Thakare) ने 9 मार्च 2006 को अपनी पार्टी की स्थापना करते समय पार्टी का चार रंगों वाला झंडा अपनाया था, जिसमें नीला और हरा रंग भी शामिल था। उस समय यह दावा किया गया था कि पार्टी सर्व जाति की समावेशी है। हालाँकि, 23 जनवरी, 2020 को अचानक परिवर्तन हुआ और शाही प्रतीक के साथ भगवा ध्वज का अनावरण किया गया। उन्होंने भगवा वस्त्र पहनकर सार्वजनिक रूप से महाराष्ट्र (Maharashtra) में कट्टर हिंदुत्व को अपनाते हुए उद्धव ठाकरे के पार्टी के हिंदुत्व पर भी गंभीर आरोप लगाए। इस बीच राज ठाकरे हिंदुत्व (Hindutva) के पैरोकार और शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे के बाद दूसरे हिंदुत्ववादी चेहरे के रूप में अपनी छवि बनाने में जुटे रहे। मनसे पार्टी प्रमुख राज ठाकरे की भगवा वस्त्र वाली फोटो पार्टी के हर प्रचार साहित्य पर दिखने लगी।
राज ठाकरे हुए महायुति गठबंधन से दर किनार
राज ठाकरे अपनी कई शैलियों के लिए प्रसिद्ध हैं, जिनमें से प्रमुख उनकी भाषण शैली है। 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों में उन्होंने गुजरात मॉडल और नरेंद्र मोदी के विकास के विजन का खुलकर समर्थन किया था। 2024 की लोकसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा के कुछ लोकसभा उम्मीदवारों के लिए जनसभाएं भी की थीं। राजनीतिक विश्लेषकों ने भविष्यवाणी की थी कि भाजपा और मनसे के समान विचार उनकी अच्छी सफलता के कारण एक महागठबंधन में बदल जाएंगे। महायुति नेताओंने न केवल राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे के लिए माहिम विधानसभा क्षेत्र की सीट छोड़ने का शिष्टाचार भी नहीं दिखाया, बल्कि इसके बजाय अमित ठाकरे को पहले ही चुनाव में पराजित होना पड़ा।
राज ठाकरे की मदद को भुला गया
पिछले 5 सालों में महाराष्ट्र की राजनीति में कई राजनीतिक घटनाक्रम हुए हैं, जिसमें कभी एक दूसरे के कट्टर विरोधी रहे दलों को ढाई साल के लिए सरकार बनानी पड़ी और शिवसेना तथा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बीच फूट भी पड़ गई। पिछला लोकसभा चुनाव कांग्रेस, राष्ट्रवादी शरद पवार और शिवसेना ने महाविकास आघाड़ी गठबंधन के तहत लड़ा था, जबकि भाजपा ने लोकसभा और विधानसभा चुनाव शिवसेना शिंदे गुट और राष्ट्रवादी अजित पवार के महागठबंधन के जरिए लड़ा था। लेकिन राज ठाकरे को किसी ने गठबंधन का हिस्सा नहीं बनाया।
राज ठाकरे पर पार्टी की मान्यता बचाने की मुसीबत
2024 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में राज ठाकरे की पार्टी ने सबसे ज़्यादा 125 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन राज ठाकरे को भारी झटका लगा और वोट शेयर में गिरावट आई। पार्टी को सिर्फ़ 1.6% वोट मिले। एक भी विधायक नहीं चुने जाने और राजनीतिक मान्यता के लिए ज़रूरी वोटों की कमी की वजह से चुनाव आयोग से इसकी मान्यता भी ख़तरे में है। इस विधानसभा चुनाव में मुंबई में शिवसेना-उद्धव ठाकरे गुट का विकल्प बनी मनसे को करारी हार का सामना करना पड़ा। लेकिन मनसे की वजह से शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट को जहां दस सीटें मिलीं, वहीं भाजपा-महायुति को मनसे से बड़ा झटका लगा।
महायुति गठबंधन में साथ ना मिलने से मनसे की हालत हुई खराब
मूल रूप से, उद्धव ठाकरे को मुंबई में मराठी भाषियों से बहुत सहानुभूति मिली थी, क्योंकि सत्तासे महाविकास अघाड़ी को हटना पड़ा था। मुस्लिम समुदाय के उलेमा बोर्ड ने भी महाविकास अघाड़ी के साथ सहयोग करने की अपील की थी। इससे पूरे राज्य में महाविकास आघाड़ी को लाभ मिला। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में आघाड़ी और गठबंधन के बीच सीट बंटवारे को लेकर काफी विवाद था और मनसे को किसी भी तरफ से सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली थी। लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का अनुमान है कि 2007 के चुनावों में मुंबई जैसे शहरों में अपनी पहचान बनाने वाली मनसे इस बार अकेले मुंबई में तीन से चार सीटें जीतेगी। हालाँकि, मुंबई में मनसे उम्मीदवारोंकी कई जगह पर जमानत जब्त हो गई।
हिंदू मतदाता ने भी नहीं दिया राज ठाकरे को साथ
मनसे के संगठनात्मक ढांचे की परीक्षा तब हुई जब कई वर्षों के बाद उसने प्रत्यक्ष चुनावों की घोषणा की और उनका सामना किया। यह एक तथ्य है कि जहां मनसे ने भाजपा जैसी पार्टी का हमेशा अपने मतदाताओंमें प्रचार किया है, वहीं मनसे के मतदाता कुछ हद तक अन्य दलों की ओर चले गए हैं। इसी तरह, राज ठाकरे के कट्टर हिंदुत्व का प्रभाव मनसे के 125 उम्मीदवारों पर कहीं भी नहीं दिखा। इस चुनाव में मानखुर्द शिवाजीनगर विधानसभा ने सभी राजनीतिक विश्लेषकों का ध्यान आकर्षित किया था। मौजूदा विधायक अबू आज़मी, पूर्व मंत्री नवाब मलिक और ओवैसी की एआईएमआईएम जैसे दिग्गज उम्मीदवारोंमें साथ ही मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्रों में मुस्लिम वोटों का बंटवारा के आसार थे, जिससे एक हिंदुत्व पार्टी की जीत के संकेत मिल रहे थे। लेकिन राज ठाकरे की मनसे को छठे स्थान पर सिमटना पड़ा यहां उनकी जमानत भी जब्त होने कारण राज ठाकरे के हिंदुत्व का रसायन प्रयोगशाला में ही फेल होने की राजनीतिक चर्चा शुरू हुई।
राज ठाकरे दोहराना नहीं चाहते दोबारा गलती
हालही, में संपन्न हुए विधानसभा चुनावों के बाद अब सभी राजनीतिक दलों की नजर अघोषित नगरनिगम और स्थानीय निकाय चुनावों पर है। बताया जा रहा है कि मनसे ने भी इसके लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। अब, कुंभ मेले के बाद, राजनीतिक विश्लेषक इस बात पर ध्यान दे रहे हैं कि राज ठाकरे महाराष्ट्र में कौन सा नया मुद्दा सामने लाएंगे और क्या वे नए जोश के साथ गांव स्तर की राजनीति में लौटते हुए संगठनात्मक बदलाव करेंगे ?

