राष्ट्रीय स्वाभिमान। प्रेम चौबे
विरार,:
वसई-विरार महानगरपालिका (VVMC) के तत्कालीन आयुक्त अनिलकुमार पवार पर एक गंभीर आरोप सामने आया है। पूर्व स्थायी समिति सभापति सुदेश चौधरी ने दावा किया है कि पवार ने अपने स्थानांतरण आदेश के बावजूद कार्यभार नहीं छोड़ा और आठ दिनों के भीतर लगभग ₹60 करोड़ की फाइलों पर हस्ताक्षर कर दिए।
चौधरी ने इस संबंध में 30 जुलाई को महापालिका के नवनियुक्त आयुक्त मनोजकुमार सूर्यवंशी से मुलाकात कर विस्तृत निवेदन सौंपा और इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष और गहन जांच की मांग की।
ईडी की छापेमारी और नकदी बरामद
यह मामला तब और गंभीर हो गया जब 29 जुलाई को वसई स्थित पवार के निवास सहित पुणे और नासिक में स्थित ठिकानों पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने छापेमारी की। सूत्रों के अनुसार, नासिक स्थित एक रिश्तेदार के घर से ₹1.3 करोड़ नकद भी जब्त किए गए हैं। हालांकि, ईडी ने अब तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है।
किन-किन फाइलों पर हस्ताक्षर?
सुदेश चौधरी के अनुसार, इन आठ दिनों में जिन फाइलों पर हस्ताक्षर किए गए, उनमें शामिल हैं:
- 41 अवैध इमारतों को कथित मंजूरी
- विवादास्पद टेंडरों को हरी झंडी
- बिल्डर लॉबी को लाभ पहुँचानेवाले निर्णय
- सार्वजनिक संपत्ति और भू-हस्तांतरण से जुड़ी फाइलें
चौधरी का आरोप है कि ये सभी निर्णय नगर रचना और भवन विभाग से संबंधित थे और इनके पीछे गहरी साजिश की आशंका है।
कौन है अनिलकुमार पवार?
अनिलकुमार पवार पिछले साढ़े तीन वर्षों से VVMC में आयुक्त पद पर कार्यरत थे। इस अवधि में उन पर कई बार मनमाने ढंग से करोड़ों रुपये के प्रोजेक्ट्स को मंजूरी देने के आरोप लगते रहे हैं। 17 जुलाई को उन्हें ठाणे स्थित मुंबई महानगर प्रदेश झोपड़पट्टी पुनर्वसन प्राधिकरण (SRA) का सीईओ नियुक्त किया गया था, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने 28 जुलाई तक VVMC में कार्य करते हुए कई अहम निर्णय लिए।
क्या मांग है चौधरी की?
सुदेश चौधरी ने मांग की है कि:
- पवार के कार्यकाल में लिए गए सभी नीतिगत निर्णयों की स्वतंत्र ऑडिट कराई जाए
- भवन अनुज्ञा, टेंडर स्वीकृति, भू-आरक्षण परिवर्तन और विभागीय ट्रांसफर से जुड़े निर्णयों की कानूनी जांच हो
- यदि इन फैसलों से जनहित को नुकसान या राजस्व की हानि हुई है, तो संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई की जाए
- अंतिम आठ दिनों में हस्ताक्षरित फाइलों पर त्वरित रोक लगाई जाए
🧾 जवाबदेही सुनिश्चित
वसई-विरार मनपा में यह प्रकरण एक बड़े घोटाले की आशंका जता रहा है। यदि आरोप सही साबित होते हैं, तो यह महाराष्ट्र की शहरी निकाय व्यवस्था पर बड़ा प्रश्नचिन्ह होगा। जनहित में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए जल्द जांच जरूरी है।