नई दिल्ली। अमेरिका में H-1B वीज़ा को लेकर एक नई नीति ने दुनियाभर में हलचल मचा दी है। डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन ने इस वीज़ा पर शुल्क बढ़ाने का निर्णय लिया है, जिसके तहत नए आवेदकों को अब H-1B वीज़ा के लिए 1 लाख अमेरिकी डॉलर यानी लगभग ₹88 लाख चुकाने होंगे। इस फैसले से अमेरिका में काम करने के इच्छुक हजारों भारतीय तकनीकी पेशेवरों को सबसे ज्यादा असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है।
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि यह शुल्क हर साल देना होगा और मौजूदा वीज़ा धारकों को भी वीज़ा रिन्यूअल के समय यही राशि चुकानी पड़ेगी, अन्यथा उन्हें अमेरिका छोड़कर अपने देश लौटना होगा। इन खबरों से लोगों में भ्रम और चिंता का माहौल बन गया।
इस गड़बड़ी को देखते हुए व्हाइट हाउस ने शनिवार को एक आधिकारिक बयान जारी कर सभी अफवाहों का खंडन किया। व्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया कि यह शुल्क केवल नए आवेदकों पर लागू होगा। मौजूदा H-1B वीज़ा धारकों को न तो अमेरिका छोड़ना पड़ेगा और न ही वीज़ा रिन्यूअल के लिए इतनी बड़ी राशि देनी होगी।
व्हाइट हाउस की प्रवक्ता कैरोलिन लेविट ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर जानकारी साझा करते हुए कहा, “जो H-1B वीज़ा धारक फिलहाल देश के बाहर हैं, उन्हें अमेरिका लौटने के लिए 1 लाख डॉलर का शुल्क नहीं देना होगा। सरकार की नई नीति केवल नए आवेदकों के लिए है, मौजूदा वीज़ा धारकों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा।”
गौरतलब है कि अमेरिका में H-1B वीज़ा पर रहने वाले लोगों में करीब 70% भारतीय हैं, जो मुख्य रूप से आईटी सेक्टर में कार्यरत हैं। ट्रम्प प्रशासन के इस नए निर्णय से अमेरिका जाने की योजना बना रहे भारतीयों के लिए रास्ता कठिन हो सकता है। कई लोगों का मानना है कि इससे उनका अमेरिका में काम करने का सपना टूट सकता है।