
14 जूनियर इंजीनियरों से करोड़ों की वसूली का आरोप, व्हाट्सऐप चैट ने खोली पोल, एंटी करप्शन ब्यूरो से जांच की मांग तेज़
ज्योति दुबे | राष्ट्रीय स्वाभिमान
नवी मुंबई। नवी मुंबई महापालिका में भ्रष्टाचार का एक और चौंकाने वाला चेहरा सामने आया है। इस बार मामला सिर्फ फाइलों में दबे भ्रष्टाचार का नहीं है—बल्कि यह खुलासा एक ऐसे व्हाट्सऐप चैट से हुआ है जिसने पूरे सिस्टम की सच्चाई सामने रख दी है।
आरोप है कि 14 कनिष्ठ अभियंताओं (जूनियर इंजीनियरों) को पदोन्नति दिलवाने के नाम पर करोड़ों रुपये की उगाही की गई। ये आरोप केवल हवा में नहीं हैं, बल्कि व्हाट्सऐप चैट में स्पष्ट शब्दों में लिखा गया है:
“काम हो गया है, सभी लोग पैसे दें। पैसे प्रशासन विभाग में देने हैं।” इस एक लाइन ने महापालिका के प्रशासनिक तंत्र की सड़ांध को उजागर कर दिया है।
प्रशासन विभाग के अधिकारी निशाने पर
विश्वस्त सूत्रों की मानें तो इस घोटाले में प्रशासन विभाग के दो अधिकारियों और एक वरिष्ठ अधिकारी की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही है। पदोन्नति की प्रक्रिया को कथित रूप से “बिकाऊ” बना दिया गया — जहां योग्यताओं से अधिक बोली की कीमत मायने रखती है।
आंतरिक जांच और फॉरेंसिक एग्ज़ामिनेशन की तैयारी
महापालिका सूत्रों के अनुसार इस घोटाले की आंतरिक जांच जल्द शुरू हो सकती है और व्हाट्सऐप चैट की फॉरेंसिक जांच भी करवाई जाएगी ताकि इलेक्ट्रॉनिक सबूतों की पुष्टि हो सके।
अब निगाहें महापालिका आयुक्त पर
सवाल यह है कि क्या महापालिका आयुक्त इस पूरे मामले में निष्पक्ष और कठोर कार्रवाई करेंगे? या फिर यह मामला भी बाकी घोटालों की तरह “फाइलों में दफन” कर दिया जाएगा?
प्रशासनिक तंत्र पर उठते सवाल
नवी मुंबई महापालिका जैसी संस्था, जो करोड़ों के बजट और हजारों नागरिकों की ज़िम्मेदारी उठाती है, यदि इसी तरह अंदर से सड़ चुकी है, तो आम नागरिक किससे न्याय की उम्मीद करें?
क्या सरकारी पदोन्नति अब एक व्यापार बन चुका है? क्या यह प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह पारदर्शिता सुनिश्चित करे और दोषियों को बिना देरी सजा दिलवाए?
राष्ट्रीय स्वाभिमान की यह रिपोर्ट प्रशासन से मांग करती है कि
>तुरंत प्रभाव से आरोपी अधिकारियों को निलंबित किया जाए।
>सीबीआई या एंटी करप्शन ब्यूरो जैसी स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराई जाए।
>जांच पूरी होने तक सभी संबंधित प्रमोशनों को स्थगित किया जाए।
“अगर न्याय प्रणाली भ्रष्टाचार के आगे घुटने टेक दे, तो लोकतंत्र की आत्मा मर जाती है।”