धर्म, समाज और कर्म का संगम ही जीवन का सच्चा अर्थ है: सौरभ सिंह
राष्ट्रीय स्वाभिमान। प्रेम चौबे
जब संस्कारों की जड़ें गहरी हों और कर्मभूमि पर सेवा का बीज बोया जाए, तब जीवन केवल सफलता की कहानी नहीं, बल्कि समाज के लिए एक प्रेरणा बन जाता है।
ऐसे ही एक प्रेरक युवा हैं सौरभ सिंह, जिनकी सोच में आध्यात्मिकता की गहराई और कर्म में समाजसेवा की स्पष्ट झलक दिखाई देती है।
प्रश्न 1: सौरभ जी, अपने परिवार और प्रारंभिक जीवन के बारे में कुछ बताइए।
उत्तर:
मेरा जन्म उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के मड़ियाहूं क्षेत्र के कोरा बीर गांव में वर्ष 1997 में हुआ। मेरे पिता श्री प्रभात सिंह ‘बबलू’ और माता श्रीमती पुष्पा सिंह ने बचपन से ही हमें सेवा, धर्म और संस्कार का मूल्य सिखाया।
प्रारंभिक शिक्षा जौनपुर में प्राप्त करने के बाद मैंने ग्रेजुएशन और फार्मेसी की पढ़ाई अपनी कर्मभूमि वसई-विरार (महाराष्ट्र) में पूरी की।
मेरे पिता स्वयं एक समाजसेवी हैं — उन्होंने मानिकपुर क्षेत्र में समाजसेवा की जो परंपरा शुरू की, वही आज मेरी प्रेरणा है।
प्रश्न 2: आपके जीवन में आध्यात्मिकता की भूमिका क्या है?
उत्तर:
हमारा परिवार वसई तालुका की सबसे पुरानी और प्रतिष्ठित कांवड़ यात्रा का आयोजन करता है। यह यात्रा केवल भक्ति का नहीं, बल्कि सेवा और अनुशासन का प्रतीक है।
मुझे लगता है कि समाजसेवा तभी सार्थक होती है जब उसमें ईश्वर के प्रति आस्था और मानवता के प्रति करुणा जुड़ी हो।
भक्ति और सेवा — यही मेरे जीवन के दो आधार हैं।
प्रश्न 3: कोरोना काल में आपके परिवार की भूमिका को समाज ने बहुत सराहा, उस अनुभव को कैसे देखते हैं?
उत्तर:
कोविड-19 महामारी के समय स्थिति बहुत कठिन थी। लोग भय और असहायता में थे।
तब मेरे पिता ने मित्रों के सहयोग से जौनपुर जिले के लोगों की मदद के लिए दो विशेष ट्रेनें रवाना करवाने की पहल की।
वह पल मेरे जीवन का turning point था, मैंने समझा कि सेवा किसी पद या पहचान से नहीं, बल्कि संवेदना से शुरू होती है।
प्रश्न 4: आप राजनीति में आने की तैयारी कर रहे हैं। राजनीति को कैसे देखते हैं?
उत्तर:
मेरी दृष्टि में राजनीति केवल सत्ता नहीं, बल्कि समाजसेवा का सबसे बड़ा मंच है।
मेरे राजनीतिक प्रेरणास्रोत महाराष्ट्र के पूर्व गृहराज्यमंत्री कृपाशंकर सिंह जी हैं। उनसे मैंने सीखा कि राजनीति धर्म और नैतिकता के आधार पर चलनी चाहिए।
धर्म हमारे खून में है, इसलिए राजनीति को मैं धर्म की तरह ही सेवा का साधन मानता हूँ, न कि व्यक्तिगत लाभ का।
प्रश्न 5: युवा पीढ़ी के लिए आपका संदेश क्या है?
उत्तर:
आज के युवा को यह समझना होगा कि आधुनिकता और संस्कार एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं।
अगर हम अपने धर्म, संस्कृति और परिवार से जुड़कर समाज के लिए कार्य करें, तो यही सच्ची देशभक्ति है।
मैं मानता हूँ कि “धर्म मनुष्य को जोड़ता है, और राजनीति अगर धर्म के साथ चले तो समाज को ऊँचाई देती है।”
सौरभ सिंह की यह यात्रा यह दर्शाती है कि भक्ति और कर्म, परंपरा और आधुनिकता, समाज और आत्मा सबका संगम एक युवा मन में संभव है। वे उस नई पीढ़ी का चेहरा हैं जो व्यवसाय में सफल होकर भी समाज से जुड़े रहना चाहती है, और जो राजनीति को सुधार और सेवा का माध्यम मानती है।