नई दिल्ली। भारतीय संस्कृति में हर पर्व के पीछे गहन वैज्ञानिक और धार्मिक दृष्टि निहित होती है। उनमें से एक है शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। आश्विन मास की यह पूर्णिमा स्वास्थ्य, आरोग्य और समृद्धि से जुड़ी मानी जाती है।
मान्यता है कि इस रात चंद्रमा अपनी 16 कलाओं के साथ धरती पर अमृतमयी किरणें बरसाता है, जो शरीर और मन दोनों को सशक्त बनाती हैं। शास्त्रों के अनुसार, चंद्रमा की रश्मियों में औषधीय गुण सक्रिय हो जाते हैं।
परंपरा है कि शरद पूर्णिमा की रात गाय के दूध, चावल, केसर और किशमिश से बनी खीर को चांदनी में रखकर प्रातः सेवन किया जाए। आयुर्वेद के अनुसार यह खीर मानसिक स्वास्थ्य और रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में सहायक है, खासकर बच्चों के लिए अत्यंत लाभकारी।
कथाओं के अनुसार, इस रात वृंदावन में श्रीकृष्ण ने महारास रचा था, इसलिए इसे रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। साथ ही, मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात लक्ष्मी सूक्त का पाठ करने से जीवन में धन-धान्य की वृद्धि होती है।
विज्ञान भी मानता है कि चंद्रमा का जल और मानसिक संतुलन पर प्रभाव होता है। समुद्र में ज्वार-भाटा से लेकर हमारे मानसिक स्वास्थ्य तक, चंद्रमा की गतियां जीवन को गहराई से प्रभावित करती हैं।