मुंबई के वाशी इलाके में दो अवैध इमारतों को लेकर चल रहे विवाद में महाराष्ट्र सरकार ने उच्च न्यायालय के सवालों का सीधा जवाब देने के बजाय याचिका के स्वरूप पर ही सवाल उठाए हैं। यह मामला तब सामने आया जब नवी मुंबई महापालिका ने इन इमारतों को तोड़ने के लिए नोटिस जारी किए थे, लेकिन उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने इन नोटिसों पर स्थगन आदेश जारी कर दिया। इस आदेश को लेकर न्यायालय ने सरकार से स्पष्ट जवाब मांगा था कि उपमुख्यमंत्री ने किस अधिकार के तहत यह स्थगन दिया।
इस कानूनी टकराव के बीच अब सवाल यह उठता है कि क्या उपमुख्यमंत्री को नियोजन प्राधिकरण की कार्रवाई पर रोक लगाने का अधिकार है? और क्या जनहित के नाम पर दायर याचिका वास्तव में जनहित की परिभाषा में आती है? आइए, अब इस पूरे घटनाक्रम की पृष्ठभूमि और कानूनी पेचीदगियों को विस्तार से समझते हैं…
सरकार का जवाब टालना,22 वर्षों से अवैध बिक्री का आरोप
यह मामला ‘कॉन्शस सिटीझन्स फोरम’ नामक एक स्वयंसेवी संस्था द्वारा उच्च न्यायालय में उठाया गया है। संस्था ने उपमुख्यमंत्री के आदेश को अवैध बताते हुए उसे रद्द करने की मांग की है और महापालिका द्वारा जारी की गई तोड़फोड़ की नोटिसों को लागू करने की अपील की है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इन इमारतों को कभी भी निवासी प्रमाणपत्र नहीं मिला, फिर भी पिछले 22 वर्षों से इनकी अवैध बिक्री जारी है।
खंडपीठ की गंभीर टिप्पणी
न्यायमूर्ति रविंद्र घुगे और न्यायमूर्ति अश्विन भोबे की खंडपीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान गंभीर टिप्पणी करते हुए पूछा कि क्या नगर विकास मंत्री के रूप में उपमुख्यमंत्री को नियोजन प्राधिकरण की कार्रवाई पर स्थगन देने का अधिकार है। अदालत ने यह भी जानना चाहा कि जब महापालिका ने कानून के अनुसार कार्रवाई शुरू की थी, तो उसमें हस्तक्षेप क्यों किया गया।
2003 से विवादित निर्माण
विवादित इमारतें ‘अपार्टमेंट ओनर्स असोसिएशन कंडोमिनियम नंबर-१४’ और ‘नैवेद्या को-ऑपरेटिव हाऊसिंग सोसायटी कंडोमिनियम नंबर-३’ हैं, जिनका निर्माण वर्ष 2003 में सिडको की अनुमति के बिना किया गया था। आरोप है कि स्थानीय नगरसेवक और शिवसेना नेता किशोर पाटकर की मिलीभगत से यह निर्माण हुआ। सिडको ने इस पर गंभीरता से संज्ञान लेते हुए संबंधित पक्षों को नोटिसें भेजीं।
महापालिका की कार्रवाई
बाद में यह क्षेत्र नवी मुंबई महापालिका के अधीन आ गया और महापालिका ने नई इमारतों को अस्थायी अनुमति दी। लेकिन निर्माण कार्य स्वीकृत आराखड़े के अनुसार नहीं हुआ, जिससे महापालिका ने 3 मार्च 2025 को तोड़फोड़ की नोटिस जारी की। इसके विरोध में सोसायटियों ने 13 मई को उपमुख्यमंत्री शिंदे से स्थगन की मांग की, जिसे उन्होंने तुरंत स्वीकार कर लिया।
इस बीच राज्य के महाधिवक्ता बिरेंद्र सराफ ने अदालत को बताया कि याचिका जनहित स्वरूप की है, क्योंकि इसमें अवैध निर्माण का मुद्दा उठाया गया है। अदालत ने इस पर संज्ञान लेते हुए महानिबंधक कार्यालय को आदेश दिया है कि वह दो दिनों के भीतर यह स्पष्ट करे कि याचिका जनहित याचिका है या व्यक्तिगत रिट।
यह मामला अब केवल अवैध निर्माण तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि इसमें प्रशासनिक अधिकारों की सीमाएं और जनहित की परिभाषा भी केंद्र में आ गई हैं। अदालत की अगली सुनवाई में यह तय होगा कि उपमुख्यमंत्री का आदेश वैध था या नहीं, और क्या महापालिका की कार्रवाई को रोका जाना कानूनन उचित था।